1857 की क्रांति आधुनिक राजस्थान के इतिहास में अपना एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है । भारत में सर्वप्रथम क्रांति की शुरुआत मेरठ में 10 मई 1857 को हुई उसके ठीक 9 दिन बाद 19 मई 1857 को Agg पेट्रीक लॉरेन्स को क्रांति की सूचना मिलती है। उसके ठीक 9 दिन बाद 28 मई 1857 को राजस्थान में सर्वप्रथम 1857 की क्रांति की शुरुआत नसीराबाद छावनी से होती है ।
नसीराबाद में विद्रोह – 1857 की क्रांति
विद्रोह करने वाली सैनिक टुकड़ी – 15 वीं बंगाल नेटिव इंफेटरी (पैदल सैना)
इन्होंने नारा दिया – चलो दिल्ली
इन सैनिकों ने अंग्रेज अधिकारी न्यूबरी व स्पोटीस वुड की हत्या कर दी एवं सभी सैनिक दिल्ली की और प्रस्थान कर जाते है ।
नीमच में विद्रोह – 1857 की क्रांति
अंग्रेज अधिकारी कर्नल एबॉट के द्वारा सभी सेनिकों को स्वामीभक्ति की शपथ दिलाई जाती है ।
IMP शपथ का विरोध – मोहम्मद अली नामक सैनिक
नीमच में क्रांति का प्रारंभ – 3 जून 1857 को हिरसिंह के नेतृत्व में
नीमच से भागे अंग्रेज परिवार एक दिन के लिए डूँगला के किसान रूँगाराम के यहाँ शरण लेते है । इस बात का पता मेवाड़ के महाराणा स्वरूपसिंह को चलने पर बेदला के सामंत बख्तसिंह के माध्यम से अंग्रेज परिवारों को उदयपुर लाया जाता है व इन्हे जगमन्दिर में शरण दी जाती है ।
8 जून 1857 को शवर्स के नेतृत्व में पुनः अंग्रेजों का नीमच पर अधिकार हो जाता है ।
शवर्स को देखकर शाहपुरा के लोगो नें दरवाजे बंद कर दिए ।
एरिनपुरा में विद्रोह – 1857 की क्रांति
एरिनपुरा में क्रांति की शुरुआत – 21 अगस्त 1857
विद्रोह करने वाली सैनिक टुकड़ी – पुर्बीया सैनिक (जौधपुर लिजीयन सैना)
नारा दिया – चलो दिल्ली मारो फिरंगी
जौधपुर लिजीयन सैना की भेंट खेरवा नामक स्थान पर आहुवा के ठाकुर खुशालसिंह से होती है । खुशालसिंह इस सेना की टुकड़ी को आहुवा ले आता है ।
आहुवा में क्रांति के 2 प्रमुख केंद्र
- कामेश्वर मंदिर
- सुगाली माता का मंदिर (10 सिर 54 हाथ)
ठाकुर खुशालसिंह आहुवा का ठिकानेदार था । यह ठिकाना जौधपुर रियासत के अंतर्गत आता था । जौधपुर के शासक तख्त सिंह नें खुशालसिंह के सामंती अधिकार छिन लिए इसीलिए इसे तख्त सिंह से बदला लेना था ।
खुशालसिंह व जौधपुर लिजीयन सेना के द्वारा मिलकर 2 प्रमुख युद्ध लड़े गए ।
1. बिथौड़ा / बिठौड़ा का युद्ध
खुशालसिंह + जौधपुर लिजीयन सैना
V/S
ब्रिटिश आर्मी (हीथकोट नेतृत्व) + जौधपुर राज्य की सैना (अनाडसिंह व कुशलराज नेतृत्व)
निष्कर्ष :- ब्रिटिश आर्मी (हीथकोट नेतृत्व) की पराजय व अनाड सिंह की मौत
अनाड सिंह आहुवा का किलेदार था ।
2. चेलावास का युद्ध
खुशालसिंह + जौधपुर लिजीयन सैना
V/S
ब्रिटिश आर्मी (पेट्रीक लौरेंस नेतृत्व)
इस युद्ध में क्रांतिकारियों नें पेट्रीक लॉरेंस की सेना को पराजित कर दिया ।
क्रांतिकारियों द्वारा जौधपुर के पॉलिटिकल एजेंट मैक मोंसन की हत्या कर दी जाती है तथा सिर काटकर आउवा के किले पर टांग दिया जाता है और नौबत बजाया जाता है ।
इस युद्ध के बाद जौधपुर लिजीयन सेना दिल्ली चली जाती है व खुशालसिंह मेवाड़ की ओर शरण लेता है ।
मेवाड़ के वह सामंत जिन्होंने खुशालसिंह को शरण दी
- कोठारिया के जोधसिंह
- सलूम्बर के केसरी सिंह
जनवरी 1858 में दिल्ली से कर्नल हॉल्म्स के नेतृत्व में सेना आउवा आती है एवं आउवा के युद्ध में कर्नल हॉल्म्स के द्वारा कुशाल सिंह के भाई पृथ्वी सिंह को पराजित कर दिया जाता है ।
कर्नल हॉल्म्स के द्वारा ही सुगाली माता की मूर्ति को अजमेर ले जाया जाता है ।
वर्तमान में यह मूर्ति पाली के बांगड संग्रहालय में सुरक्षित है ।
एरिनपुरा छावनी
खुशालसिंह ने नीमच में जाकर अंग्रेजों के समक्ष समर्पण कर दिया, इसकी जांच के लिए “टेलर आयोग” का गठन किया जाता है । इस आयोग ने खुशालसिंह को बेगुनाह मानते हुए 1860 में बरी कर दिया ।
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कोटा में विद्रोह – 1857 की क्रांति
शासक – रामसिंह द्वितीय
पॉलिटिकल एजेंट – बर्टन
प्रमुख क्रांतिकारी – जयदयाल, मेहराब खाँ, जियालाल
क्रांतिकारियों ने रामसिंह को महल में नजरबंद कर दिया एवं कोटा का प्रशासन अपने हाथ में ले लिया । माथुरेश जी के मंदिर के गोस्वामी कन्हैयादास नें क्रांतिकारी व शासक के मध्य समझौता करवाने का प्रयास किया जो असफल रहा । 15 अक्टूबर 1857 को कोटा में क्रांति होती है । क्रांतिकारियों नें पॉलिटिकल एजेंट बर्टन की हत्या कर उसके शव को पूरे कोटा में घुमाया साथ में एक अंग्रेज डॉक्टर “कॉटम” भी मार जाता है ।
मार्च 1858 में अंग्रेज सेनापति रॉबर्ट्सन एवं करौली के शासक मदनपाल की संयुक्त सेना ने पुनः कोटा पर अधिकार कर लिया व क्रांतिकारियों को तोपों से उड़ा दिया ।
ब्रिटिश सरकार नें रामसिंह द्वितीय के तोपों को सलामी 15 से घटा कर 11 कर दी एवं करौली के शासक मदनपाल को GCI(Grand Commander Of India) की उपाधि प्रदान की ।
जयपुर में विद्रोह – 1857 की क्रांति
शासक – रामसिंह द्वितीय
पॉलिटिकल एजेंट – ईडन
प्रमुख क्रांतिकारी – विलायत खाँ, उस्मान खाँ, सादुल्ला खाँ
क्रांति के दौरान यहाँ के क्रांतिकारियों ने मुगल शासक बहादुर शाह ज़फ़र के साथ पत्र व्यवहार किया ।
रामसिंह को इस बात का पता चलने पर क्रांतिकारियों को दण्डित किया गया ।
रामसिंह द्वितीय को अंग्रेज सरकार नें क्रांति में सहयोग करने के कारण “सितार-ए-हिन्द” की उपाधि प्रदान की ।
धौलपुर में विद्रोह – 1857 की क्रांति
शासक – भगवंत सिंह
प्रमुख क्रांतिकारी – राव रामचन्द्र व हिरालाल
राव रामचन्द्र व हिरालाल नें क्रांति के दौरान शाही तोपखाने पर अधिकार कर लिया ।
क्रांति को कुचलने के लिए पटियाला, पंजाब से सेना आई ।
भरतपुर में विद्रोह – 1857 की क्रांति
शासक – जसवंत सिंह
पॉलिटिकल एजेंट – मॉरिसन
क्रांति – गुर्जर व मेव जाती द्वारा
मेव - औरंगज़ेब के शासन में धर्मांतरण हुए हिन्दू जो मुस्लिम बने
टोंक में विद्रोह – 1857 की क्रांति
क्रांति के समय टोंक का नवाब – वज़ीरुदौला
टोंक रियासत के अंतर्गत निम्बाहेड़ा ठिकाना आता था । यहाँ का ठिकानेदार ताराचंद पटेल था यह क्रांति के दौरान अंग्रेज सेनापति जैक्सन से युद्ध में मारा जाता है ।
IMP टोंक की क्रांति में महिलाओं ने भी भाग लिया ।
अलवर में विद्रोह – 1857 की क्रांति
शासक – बन्ने सिंह
दीवान – फैजुल शाह
फैजुल शाह नें क्रांतिकारियों का साथ दिया था ।
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