राजस्थान की भाषा एवं बोलियाँ | Rajasthan Ki Bhasha Evam Boliyan

Rajasthan Ki Bhasha Evam Boliyan – जॉर्ज अब्राहम ग्रीयर्सन के अनुसार राजस्थानी भाषा की उत्पत्ति नागर अपभ्रंश से हुई तथा महावीर प्रसाद शर्मा व टेस्सीटोरी के अनुसार राजस्थानी भाषा की उत्पत्ति शोरसैनी अपभ्रंश से हुई थी । मोतीलाल मेनारिया व k. m. मुंशी के अनुसार राजस्थानी भाषा की उत्पत्ति गुर्जर अपभ्रंश से हुई थी और सुनीति कुमारी चटर्जी के अनुसार राजस्थानी भाषा की उत्पत्ति सौराष्ट्री अपभ्रंश से हुई थी ।

राजस्थान की मातृभाषाराजस्थानी
राजस्थान की राजभाषाहिन्दी
विश्व में भाषाओं की दृष्टि से राजस्थानी भाषा का स्थान16 वां
भारत में भाषाओं की दृष्टि से राजस्थानी भाषा का स्थान7 वां
राजस्थानी भाषा की लिपिमुड़िया लिपि
 Note:- मुड़िया लिपि को बणीयाणवी / महाजनी लिपि भी कहते है और यह लकीर घसीट कर लिखी जाती है ।

उद्ध्योतन सूरी नें अपने ग्रंथ “कुवलयमाला” में 18 देसी भाषाओं में मरु भाषा का उल्लेख किया है । जॉर्ज अब्राहम ग्रीयर्सन के अनुसार राजस्थान में कुल 84 बोलियाँ बोली जाती है । 1961 की गणना के अनुसार राजस्थान में कुल 73 बोलियाँ बोली जाती है । कुशललाभ नें अपने ग्रंथ “पिंगल सिरोमणि” व अबुल फज़ल नें अपने ग्रंथ “आइनें अकबरी” में सर्वप्रथम मारवाड़ी शब्द का प्रयोग किया । 1912 में जॉर्ज अब्राहम ग्रीयर्सन नें अपनी पुस्तक “लिंगविस्टीक सर्वे ऑफ इंडिया” में सर्वप्रथम राजस्थानी शब्द का प्रयोग किया । भाषा विज्ञान के अंतर्गत राजस्थानी भाषा को भारोपीय भाषा परिवार में रखा गया है ।

राजस्थानी भाषा का वंश वृक्ष – Rajasthan Ki Bhasha Evam Boliyan

Rajasthan Ki Bhasha Evam Boliyan
Note: राजस्थानी भाषा की उत्पत्ति शोरसैनी प्राकृत भाषा के गुर्जर अपभ्रंश से मानी गई है ।

राजस्थानी भाषा का कालक्रम – Rajasthan Ki Bhasha Evam Boliyan

  1. गुर्जर अपभ्रंश – 11 वीं सदी से 13 वीं सदी तक
  2. प्राचीन राजस्थानी – 13 वीं सदी से 16 वीं सदी तक
  3. मध्य राजस्थानी – 16 वीं सदी से 18 वीं सदी तक
  4. अर्वाचीन राजस्थानी – 18 वीं सदी से वर्तमान तक
  5. राजस्थानी भाषा दिवस – 21 फरवरी
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राजस्थानी भाषा की 2 उपभाषाए – Rajasthan Ki Bhasha Evam Boliyan

1. डिंगल

  • चारण और मारवाड़ी भाषा का मिश्रण
  • इसकी उत्पत्ति गुर्जर अपभ्रंश से मानी गई है ।
  • चारण जाती द्वारा मारवाड़ी का जो साहित्यिक रूप प्रयोग में लिया गया डिंगल कहा गया ।
  • राजस्थान का अधिकांश साहित्य डिंगल भाषा मे लिखा गया है ।

2. पींगल

  • भाट और बृज भाषा का मिश्रण
  • इसकी उत्पत्ति शौरसेनी अपभ्रंश से मानी गई है।
  • भाट जाती द्वारा बृज भाषा का जो साहित्यिक रूप प्रयोग में लिया गया, वह पींगल कहलाया ।

पश्चिमी राजस्थान की मुख्य बोली – Rajasthan Ki Bhasha Evam Boliyan

मारवाड़ी

  • यह राजस्थान की सबसे प्रधान / मानक / स्टैन्डर्ड बोली है ।
  • यह राजस्थान की सबसे प्राचीन बोली है ।
  • मारवाड़ी का प्राचीन नाम मरु भाषा है ।
  • राजस्थान के सर्वाधिक क्षेत्रफल में सर्वाधिक लोगों द्वारा सर्वाधिक बोली जाने वाली बोली है ।
  • यह भाषा मुख्यतः जालौर, नागौर, जोधपुर, बीकानेर, जैसलमेर, बाड़मेर, सिरोही एवं पाली में बोली जाती है ।

मारवाड़ी की उपबोलियाँ :-

मेवाड़ी, वागड़ी, गोड़वाड़ी, देवड़ावाटी, खैराडी, थली, ढटकी, नागौरी, बीकानेरी एवं शेखावटी

  1. मेवाड़ी: यह सर्वाधिक उदयपुर, राजसमंद, चित्तौड़ एवं भीलवाड़ा में बोली जाती है । इस बोली में सर्वाधिक नी शब्द का प्रयोग होता है ।
  2. वागड़ी: यह सर्वाधिक डूंगरपुर, बांसवाड़ा तथा सिरोही व प्रतापगढ़ के कुछ क्षेत्रों में बोली जाती है । जॉर्ज अब्राहम ग्रीयर्सन के अनुसार सर्वाधिक भीलों द्वारा बोली जाने के कारण यह भीली बोली के नाम से भी जानी जाती है । इस पर सबसे ज्यादा प्रभाव गुजराती भाषा का है ।
  3. गोड़वाड़ी: यह सर्वाधिक जालौर व पाली में बोली जाती है । इस बोली की मुख्य रचना “बिसलदेव रासो” है ।
  4. देवड़ा वाटी: यह सर्वाधिक सिरोही में बोली जाती है इसलिए इसे सिरोही बोली भी कहा जाता है ।
  5. खेराड़ी: मेवाड़ी + हाड़ोती + ढूँढाड़ी का मिश्रण । यह सर्वाधिक जहाजपुर व शहपुरा, भीलवाडा, बूंदी तथा टोंक में बोली जाती है । सर्वाधिक मालपुरा, टोंक में बोली जाने के कारण इसे “माल खेराड़ी” भी कहा जाता है ।
  6. थली: यह गंगानगर के दक्षिणी भाग, बीकानेर के पूर्वी भाग व नागौर के उत्तरी भाग में बोली जाती है ।
  7. ढटकी: यह बाड़मेर के आस पास बोली जाती है ।

उत्तरी पूर्वी राजस्थान की मुख्य बोली – Rajasthan Ki Bhasha Evam Boliyan

ढूँढाड़ी

  • इसे सादुक्कड़ी भाषा भी कहते है ।
  • अटा दौज का त्योहार ढढ़ में मनाया जाता है ।
  • यह मुख्यतः अजमेर, टोंक, दौसा व जयपुर में बोली जाती है ।
  • इसे जयपुरी व झाड़शाही के नाम से भी जाना जाता है ।
  • संत दादू दयाल के ग्रंथ (दादू दयाल री वाणी, दादू दयाल रो दुहा) इसी बोली में लिखे गए है ।
  • इसका प्राचीन उल्लेख “आठ देश गुर्जरी” नामक पुस्तक में मिलता है ।

ढूँढाड़ी की उपबोलियाँ :-

तोरावाटी, राजावाटी, चौरासी, नागरचोल, काठेड़ी, किशनगढ़ी, अजमेरी व हाड़ौती

  1. तोरावाटी: यह जयपुर के उत्तरी भाग, झुंझनु के दक्षिणी व सीकर के पूर्वी भाग में बोली जाती है ।
  2. राजावाटी: यह जयपुर के पूर्वी भाग में बोली जाती है ।
  3. चौरासी: यह टोंक के पश्चिमी भाग में बोली जाती है ।
  4. नागरचोल: यह सवाई माधोपुर के पश्चिमी भाग में तथा टोंक के दक्षिणी भाग में बोली जाती है ।
  5. काठेड़ी: यह जयपुर के दक्षिणी भाग में बोली जाती है ।
राजस्थान की सबसे मधुर बोली :- मालवी
राजस्थान की सबसे कर्कश बोली :- रागड़ी
राजस्थान की सबसे कठिन बोली :- हाड़ौती 

पूर्वी राजस्थान की मुख्य बोली – Rajasthan Ki Bhasha Evam Boliyan

1. अहीरवाटी

  • हीरवाटी / हिरवाल / यादवों की बोली
  • यह जयपुर की कोटपुतली तहसील में बोली जाती है ।
  • यह अलवर की बहरोड़ तहसील में बोली जाती है ।
  • यह किशनगढ़ के पश्चिमी क्षेत्र में बोली जाती है ।
  • ऐतिहासिक काल में इस क्षेत्र को “राठ” कहा जाता था इसलिए इसे राठी के नाम से भी जाना जाता है ।

2. मेवाती

  • यह भरतपुर, अलवर व करौली में बोली जाती है ।
  • यह हरियाणवी, बृज तथा मरुभाषा का मिश्रण है ।

दक्षिणी पूर्वी राजस्थान की मुख्य बोली – Rajasthan Ki Bhasha Evam Boliyan

1. रागड़ी

  • यह मारवाड़ी व मालवी का मिश्रण है ।
  • यह राजस्थान की सबसे कर्कश बोली है ।

2. मालवी

  • मालवा प्रांत की होने के कारण इसे मालवी बोल जाता है ।
  • यह मुख्यतः प्रतापगढ़, झालावाड़, कोटा व चित्तौड़ में बोली जाती है ।
  • यह ढूँढाड़ी व मारवाड़ी से प्रभावित है ।
  • इसे राजस्थान की सबसे मधुर बोली कहा जाता है ।
  • इसकी उपभाषा निमाड़ी को दक्षिण राजस्थानी भी कहा जाता है ।

3. हाड़ौती

  • यह मेवाड़ी तथा गुजराती भाषा का मिश्रण है ।
  • यह ढूँढाड़ी की उपबोली है ।
  • यह राजस्थान की सबसे कठिन बोली है ।
  • 1875 में सर्वप्रथम इसका प्रयोग केलांग ने अपने हिन्दी व्याकरण में किया था ।

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