Rajasthan Ke Pramukh Krantikariyon के बारे मे विस्तार से जानने के लिए आपको पहले 1827 की क्रांति, प्रजामंडल आंदोलन तथा अंग्रेजों से हुए संघर्षों को समझना होगा । इस स्वतंत्रता संग्राम में पुरुषों के साथ महिलाओं नें भी बढ़ चढ़ कर भाग लिया । प्रमुख पुरुष क्रांतिकारियों में तात्या टोपे, अमरचंद बाठीया, डूँगजी – जवाहरजी, विजयसिंह पथिक, अर्जुनलाल सेठी, केसरी सिंह बारहठ, जोरावर सिंह बारहठ, प्रताप सिंह बारहठ, दामोदर दास राठी, गोपालसिंह खरवा तथा श्यामजी कृष्ण वर्मा शामिल है । इनके अलावा भी बहुत सारे क्रांतिकारियों नें भाग लिया जिनका नाम भूतकाल में कहीं खो गया ।
Rajasthan Ke Pramukh Krantikari – FAQ
Table of Contents
राजस्थान का गांधी | गोकुल भाई भट्ट (सीकर) |
राजस्थान के स्वतंत्रता संग्राम का भामाशाह | दामोदर दास राठी |
राजस्थान का नेहरू | जुगल किशोर चतुर्वेदी |
राजस्थान का लोह पुरुष | दामोदरलाल व्यास (ब्यावर) |
राजस्थान का चंद्रशेखर आजाद | जोरावर सिंह बारहठ |
चिड़ावा (झुंझनु) का गांधी | मास्टर प्यारेलाल |
वागड़ का गांधी | भोगीलाल पंड्या |
राजस्थान में सशस्त्र क्रांति का जनक | गोपाल सिंह खरवा |
क्रांतिकारियों के पिता | वासुदेव बलवंत फड़के |
क्रांतिकारियों की माता | मैडम भिकाजी कामा |
तात्या टोपे
तात्या टोपे का मूलनाम – रामचन्द्र पांडुरंग
क्रांति के दौरान यह राजस्थान के शासकों से सहायता लेने के लिए 2 बार आते है ।
तात्या टोपे का राजस्थान में प्रथम बार प्रवेश – 8 अगस्त 1857 को
पहली बार वें भीलवाडा से प्रवेश कर के कोठारिया, झालावाड़ होते हुए वापस मध्य प्रदेश जाते है ।
9 अगस्त 1857 को – कुआड़ा का युद्ध / कोठारी नदी का युद्ध (क्युकी यह भीलवाडा में कोठारी नदी के तट पर हुआ)
इस युद्ध में अंग्रेज सेनापति रॉबर्टसन तात्या टोपे को पराजित कर देता है ।
झालावाड़ में तात्या टोपे वहाँ के शासक पृथ्वीसिंह को पराजित कर के स्वयं को झालावाड़ का शासक घोषित कर देते है।
तात्या टोपे का राजस्थान में दूसरी बार प्रवेश – 11 दिसम्बर 1857 को
दूसरी बार वें बांसवाड़ा से प्रवेश कर के प्रतापगढ़, टोंक होते हुए मेवाड़ जाते है ।
तात्या टोपे नें बांसवाड़ा पर भी अधिकार कर लिया था ।
टोंक में इनकी सहायता “मीर आलम” के द्वारा की गई ।
तात्या टोपे में जैसलमेर रियासत से सहायता नहीं मांगी ।
वासुदेव बलवंत फड़के क्रांतिकारियों के पिता माने जाते है ।
अमरचंद बाठीया – Rajasthan Ke Pramukh Krantikari
निवासी – बीकानेर
ग्वालियर के मुख्य दीवान में नियुक्त
क्रांति के दौरान इन्होंने सरकारी खजाने से सैनिकों को आर्थिक सहायता प्रदान की इसलिए इन्हे क्रांति का भामाशाह कहा गया ।
अंग्रेजों को इस बात का पता चलने पर इन्हे फांसी पर चढ़ा दिया जाता है ।
फांसी पर चढ़नें वाला प्रथम राजस्थानी होने के कारण इन्हे “राजस्थान का मंगल पांडे” कहा जाता है ।
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डूँगजी – जवाहरजी Rajasthan Ke Pramukh Krantikari
रिश्ते मे काका – भतीजा होते थे
निवासी – सीकर
क्रांति के दौरान इन्होंने धनी लोगो को लूटकर क्रांतिकारियों की सहायता की ।
ब्रिटिश सेना नें इन्हे बंदी बनाया तो लोटिया जाट व करमा मीणा नें इन्हे सेना से मुक्त करवाया ।
विदेश में किसी महिला द्वारा भारतीय ध्वज फहराने के कारण मैडम भिकाजी कामा को क्रांतिकारियों की माता माना जाता है । इन्होंने 1907 में जर्मनी के स्टुगार्ड ध्वज फहराया था ।
विजयसिंह पथिक – Rajasthan Ke Pramukh Krantikari
विजयसिंह पथिक का मूलनाम – भूपसिंह
निवासी – गूठावली, बुलंदशहर, उत्तर प्रदेश
प्रभाव – सचिन्द्र सान्याल, रास बिहारी बोस
सचिन्द्र सान्याल के कहने पर विजयसिंह पथिक aka भूपसिंह राजस्थान में सशस्त्र क्रांति में योगदान देने व गोपालसिंह खरवा की सहायता करने आते है । अंग्रेजों को इस बात की भनक लगनें पर भूपसिंह को अजमेर की टॉडगढ़ जैल में कैद कर लिया जाता है । यहीं से फरार होकर यह अपना नाम “विजयसिंह पथिक” रख देते है और चित्तौड़ के ओछड़ी गाँव में “हरिभाई किंकर” के द्वारा संचालित विध्या प्रचारणी सभा से जुड़ जाते है ।
अर्जुनलाल सेठी – Rajasthan Ke Pramukh Krantikari
जन्म – 1880
जन्म स्थान – जयपुर के जैन परिवार में
अर्जुनलाल सेठी को राजस्थान में क्रांति प्रारंभ करने का श्रेय दिया जाता है इसीलिए इन्हे राजस्थान में क्रांति का जनक कहा जाता है।
सुंदरलाल नें अर्जुनलाल सेठी को राजस्थान का दधीचि कहा ।
रामनारायण चौधरी नें अर्जुनलाल सेठी को राजस्थान का तिलक कहा ।
इन्होनें चौमु के जागीरदार के यहाँ नौकरी की । जयपुर के शासक माधौसिंह-ii नें इन्हे नौकरी का प्रस्ताव भेजा तो इन्होनें इस प्रस्ताव को यह कहकर ठुकरा दिया की “अगर मै राज्य की नौकरी करूंगा तो देश की सेवा कौन करेगा ।”
अर्जुनलाल सेठी नें 1905 में जैन शिक्षा प्रचार समिति की स्थापना की ।
1907 में अर्जुनलाल सेठी नें जैन शिक्षा सोसाइटी की स्थापना की ।
निमाज हत्याकांड में अर्जुनलाल सेठी को सजा हो जाती है तथा इन्हे वैल्लुर जैल (मद्रास) में कैद रखा जाता है ।
जीवन के अंतिम पड़ाव में इन्होंने अजमेर दरगाह में अध्यापन का कार्य किया तथा यहीं पर इनकी मृत्यु ही जाती है एवं इन्हे मुस्लिम समझकर दफना दिया जाता है । यह उर्दू, फारसी के ज्ञाता थे ।
अर्जुनलाल सेठी नें 2 नाटक लिखे – 1. महेंद्रकुमार 2. मदन पराजय
अर्जुनलाल सेठी द्वारा लिखी गई पुस्तकें – 1. शूद्र मुक्ति 2. स्त्री मुक्ति
1908 में जैन शिक्षा सोसाइटी का मुख्यालय "जयपुर" बनाया गया एवं इसके तहत "वर्धमान पाठशाला" खोली गई । यह राजस्थान में क्रांतिकारियों का प्रमुख केंद्र थी ।
केसरी सिंह बारहठ – Rajasthan Ke Pramukh Krantikari
जन्म – 1872
जन्म स्थान – शाहपुरा, भीलवाड़ा
केसरी सिंह बारहठ को राजस्थान केसरी के नाम से जाना जाता है ।
यह कोटा राजघराने में राज कवि थे ।
इन्हे जौधपुर के साधु प्यारेलाल हत्याकांड में 20 वर्ष की सजा हुई एवं इन्हे बिहार की हजारीबाग जैल में रखा गया ।
1903 में लॉर्ड कर्जन के द्वारा दिल्ली में दरबार का आयोजन किया गया, इसमें मेवाड़ के महाराणा फतेहसिंह भाग लेने जाते है । केसरी सिंह बारहठ नें फतेहसिंह को रोकने के लिए “चेतावनी रा चुग्टया” नामक रचना लिखी जिसमें 13 सोरठे थे ।
Imp केसरी सिंह बारहठ नें 1910 में “वीर भारत सभा” की स्थापना की । सहयोगी – गोपाल सिंह खरवा
रास बिहारी बोस में केसरी सिंह बारहठ के लिए कहा गया की आजादी के आंदोलन में एकमात्र परिवार देश के लिए पूरा का पूरा शहिद हो गया ।
जोरावर सिंह बारहठ – Rajasthan Ke Pramukh Krantikari
जन्म – उदयपुर
केसरी सिंह बारहठ का भाई
इन्होनें वर्धमान पाठशाला में प्रशिक्षण लिया ।
1912 में लॉर्ड होर्डिंग्स पर क्रांतिकारियों के द्वारा बम फेका गया, इसकी अगुवाई इन्होनें ही की थी ।
जोरावर सिंह बारहठ आजीवन अंग्रेजों की पकड़ में नहीं आए, इसीलिए इन्हे राजस्थान का चंद्रशेखर आजाद कहा जाता है ।
जोरावर सिंह बारहठ की मृत्यु – कोटा में
प्रताप सिंह बारहठ – Rajasthan Ke Pramukh Krantikari
जन्म – उदयपुर
केसरी सिंह बारहठ के पुत्र
बनारस षड्यंत्र केस में इन्हे गिरफ्तार कर बरेली जैल में कैद कर लिया जाता है ।
इन्होनें कहा की “मै अपनी माँ को चुप करवाने के लिए देश की हजारों माताओं को नहीं रुला सकता” ।
दामोदर दास राठी – Rajasthan Ke Pramukh Krantikari
जन्म – पोकरण (जैसलमेर)
इन्होनें 1916 में ब्यावर में आर्य समाज व होम रूल लीग की स्थापना की ।
इन्हे राजस्थान के स्वतंत्रता संग्राम का भामाशाह कहा जाता है ।
गोपालसिंह खरवा – Rajasthan Ke Pramukh Krantikari
इनका संबंध अजमेर के खरवा ठिकाने से था ।
इन्हे राजस्थान में सशस्त्र क्रांति का जनक माना गया ।
इन्हे अजमेर की टॉडगढ़ जैल में कैद रखा गया ।
श्यामजी कृष्ण वर्मा – Rajasthan Ke Pramukh Krantikari
यह उदयपुर व जूनागढ़ में दीवान थे ।
Imp इन्होनें लंदन में 1905 में इंडिया हाउस की स्थापना की जो की विदेश में प्रथम क्रांतिकारी संस्था थी ।
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